संगीत रत्नाकार में 264 रागों का वर्गीकरण
संगीत शास्त्र पर व्याख्यान, रागों की दी गई जानकारी
न्यूज़ मिथिला , दरभंगा संवाददाता : ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के संगीत एवं नाट्य विभाग में चल रहे सात दिवसीय ‘विश्व संगीत दिवस समारोह’ के दूसरे दिन मंगलवार को ‘संगीत शास्त्र और बंदिश गायन’ विषय पर व्याख्यान सह शिक्षण कार्यक्रम हुआ। कार्यक्रम की शुरुआत विभागीय छात्र-छात्राओं द्वारा वंदना प्रस्तुति से हुई। इसके बाद विभागाध्यक्ष प्रो. लावण्य कीर्ति सिंह ‘काव्या’ ने अतिथियों का स्वागत किया।
कार्यक्रम में पटना विश्वविद्यालय के संगीत विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अरविन्द कुमार विषय-विशेषज्ञ के रूप में उपस्थित रहे। विशिष्ट अतिथि के रूप में राम सकल सिंह विज्ञान महाविद्यालय, सीतामढ़ी के प्राचार्य डॉ. त्रिविक्रम नारायण सिंह मौजूद रहे। डॉ. सिंह ने आयोजन की सराहना की।
डॉ. अरविन्द कुमार ने वेद और वैदिक संगीत से विकसित संगीत की चर्चा की। उन्होंने बताया कि भरत के ‘नाट्यशास्त्र’ में जाति-गायन के लक्षण स्पष्ट रूप से मिलते हैं। इसमें राग का स्वरूप ग्राम-राग के रूप में दिखता है। मतंग के ‘वृहद्देशी’ ग्रंथ में जाति-गायन और राग-प्रणाली का शास्त्रीय रूप मिलता है। शारंगदेव ने ‘संगीत रत्नाकर’ में दस विध राग-वर्गीकरण के अंतर्गत 264 रागों को लक्षणों सहित वर्गीकृत किया। इन रागों को बाद के विद्वानों ने भी अपनाया।
आधुनिक काल में पंडित विष्णु नारायण भातखंडे ने प्रचलित रागों को मानकीकृत किया। इससे रागों के स्वरूप में एकरूपता आई। पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर ने दरबारी स्वरूप वाली बंदिशों में संशोधन किया। इससे सुसंस्कृत समाज में बंदिशों को समान रूप से अपनाया जा सका।
व्याख्यान के बाद डॉ. अरविन्द कुमार ने राग भूपेश्वरी में छोटा ख्याल और मध्यलय की बंदिश (झपताल) सिखाई। प्रतिभागियों को अभ्यास भी कराया। यह सत्र सभी के लिए लाभकारी रहा।