उपराष्ट्रपति पद पर हुकुमदेव यादव? भाजपा का बड़ा दांव हो सकता है?

न्यूज़ मिथिला / निशान्त झा :
बिहार की राजनीति में जातीय समीकरण हमेशा से खास भूमिका निभाते आए हैं। अब जब विधानसभा चुनाव नजदीक हैं, तब भाजपा की ओर से एक नया समीकरण गढ़े जाने की चर्चा जोरों पर है। बात हो रही है मधुबनी के वरिष्ठ नेता हुकुमदेव नारायण यादव की, जिन्हें लेकर अटकलें हैं कि भाजपा उन्हें उपराष्ट्रपति पद के लिए नामित कर सकती है!
यह केवल एक संवैधानिक पद देने की बात नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक बड़ी राजनीतिक रणनीति छिपी हो सकती है।
हुकुमदेव यादव बिहार ही नहीं, पूरे देश में किसान, गांव और गरीबों की आवाज़ के तौर पर जाने जाते हैं। वे संसद में अपने बेबाक अंदाज और दमदार भाषणों के लिए प्रसिद्ध रहे हैं। वे यादव समुदाय से आते हैं, जो बिहार में सबसे बड़ा OBC समूह है और परंपरागत रूप से राजद का समर्थन करता रहा है।
अगर भाजपा उन्हें उपराष्ट्रपति बनाती है, तो यह यादव समाज को राष्ट्रीय राजनीति में भागीदारी देने का संकेत होगा।
दरअसल, बिहार में भाजपा को पिछड़ों और खासकर यादवों के बीच अपनी पकड़ मजबूत करनी है। अभी तक यादव मतदाता राजद के साथ मजबूती से खड़े रहे हैं। अगर भाजपा इस समुदाय से किसी सीनियर नेता को देश के दूसरे सबसे बड़े संवैधानिक पद तक पहुंचाती है, तो इसका सीधा असर आने वाले चुनावों में देखने को मिल सकता है।
यादव समाज में यह संदेश जाएगा कि भाजपा अब सिर्फ सवर्णों या शहरी वोट तक सीमित नहीं, बल्कि वास्तव में सामाजिक प्रतिनिधित्व देने की दिशा में काम कर रही है।
राजद हमेशा से खुद को पिछड़ों का सबसे बड़ा हितैषी बताता आया है। अगर भाजपा पहले राष्ट्रपति पद पर द्रौपदी मुर्मू (एक आदिवासी महिला) और अब उपराष्ट्रपति पद पर हुकुमदेव यादव जैसे चेहरे को आगे करती है, तो विपक्ष के पास इसका जवाब देना आसान नहीं होगा।
राजनीतिक स्तर पर यह भाजपा की ओर से एक ‘सामाजिक संतुलन वाला मास्टरस्ट्रोक’ कहा जा सकता है। फिलहाल यह बात सिर्फ अटकलों तक सीमित है, लेकिन अगर ऐसा होता है तो बिहार की राजनीति में एक नई बहस जरूर शुरू होगी। इससे राजद के वोटबैंक में सेंध लग सकती है और भाजपा का सामाजिक दायरा और बड़ा हो सकता है।
अब देखना यह होगा कि भाजपा इस पर कितना आगे बढ़ती है, और क्या यह नाम केवल चर्चा में रहेगा या सच में देश के दूसरे सबसे बड़े पद तक पहुँचेगा!



