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राजा सलहेस पूजा: कुलदेवता की आराधना में डूबा सिनुआर गोपाल, श्रद्धालुओं का उमड़ा सैलाब

न्यूज़ मिथिला डेस्क / दरभंगा :

जिले के बहादुरपुर प्रखंड क्षेत्र के सिनुआर गोपाल गांव में शुक्रवार को राजा सलहेस पूजा का आयोजन अत्यंत भव्यता और श्रद्धा के साथ संपन्न हुआ। हरिपट्टी पंचायत अंतर्गत इस आयोजन की तैयारी पहले से ही बड़े उत्साह के साथ की जा रही थी। राजा सलहेस, जो पासवान समाज के कुल देवता माने जाते हैं, उनकी पूजा हर साल सावन महीने में की जाती है। यह पूजा सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान भर नहीं, बल्कि समाजिक एकता, परंपरा और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक भी है।

पूजा के दिन दूर-दराज से श्रद्धालु गांव में एकत्रित हुए। समाज के लोग अपने परिवार के साथ वहां पहुंचे, कुलदेवता की आराधना की और अपने जीवन में सुख, समृद्धि तथा शांति की कामना की। इस आयोजन की विशेष बात यह रही कि इस अवसर पर सिद्धि प्राप्त मानर भगत, बेनीपुर प्रखंड के बहेड़ा गांव से आए भगत अरुण पासवान, और समस्तीपुर के सिंघिया क्षेत्र से मिरदंग वादक पहुंचे। इन कलाकारों ने पारंपरिक धार्मिक खेलों और गीतों के माध्यम से देवी-देवताओं का स्मरण कराया, जिससे वहां एक अद्भुत आध्यात्मिक वातावरण बन गया।

ग्रामीणों ने इस पूजा को अपनी संस्कृति की रीढ़ बताया। फकीर पासवान ने कहा कि राजा सलहेस की पूजा से समाज में कल्याण और सामूहिक एकता की भावना मजबूत होती है। संतोष पासवान ने इस बात पर ज़ोर दिया कि यह पूजा हमारे कुल देवता के प्रति श्रद्धा का प्रतीक है और हम हर वर्ष इसी भावना से इसे मनाते हैं। लक्ष्मण पासवान ने कहा कि राजा सलहेस हमारे आराध्य हैं, जिनकी कृपा से समाज आगे बढ़ रहा है। किशोरी पासवान ने अपने भाव साझा करते हुए कहा कि सलहेस भगवान की असीम कृपा से ही समाज के लोग आज जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सफलता प्राप्त कर रहे हैं। वहीं दिलीप पासवान ने इसे पारंपरिक पूजन के रूप में वर्णित करते हुए कहा कि हम सब मिलकर अपने पूर्वजों और कुलदेवता की स्मृति में यह पूजा करते हैं और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

इस आयोजन में सिर्फ स्थानीय ग्रामीण ही नहीं, बल्कि आसपास के गांवों और पंचायतों से भी बड़ी संख्या में लोग उपस्थित रहे। हरिपट्टी पंचायत के मुखिया कैलाश बाबा और विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि भी इस अवसर पर पहुंचे, जिससे आयोजन की गरिमा और भी बढ़ गई।

कुल मिलाकर, यह पूजा सिर्फ एक धार्मिक क्रिया नहीं रही, बल्कि यह पासवान समाज के लोगों के लिए एकजुटता, अपनी परंपरा से जुड़ाव और आध्यात्मिक अनुभव का अवसर बन गई।


 

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