दरभंगाबिहारराज्य

मंत्री मदन सहनी के विधानसभा क्षेत्र में बीस साल से पेड़ के नीचे चल रहा स्कूल, कब बनेगा भवन?

न्यूज़ मिथिला डेस्क :

दरभंगा जिले के एक गांव में पिछले बीस वर्षों से एक सरकारी प्राथमिक विद्यालय पेड़ के नीचे संचालित हो रहा है। इस स्कूल का नाम है प्राथमिक विद्यालय लीवाटोल, जो हनुमाननगर प्रखंड के गोदियारी गांव में है। यहां आज तक न कोई स्कूल भवन बना है, न कोई क्लासरूम। बच्चे मिट्टी पर बैठकर पढ़ाई करते हैं, और ब्लैकबोर्ड के लिए पीपल के पेड़ के चारों ओर बने सीमेंट के चबूतरे का इस्तेमाल किया जाता है।

स्कूल में कुल छह शिक्षक हैं। चार शिक्षक बीपीएससी से चयनित हैं और दो नियोजित शिक्षक हैं। ये सभी मिलकर पहली से लेकर पांचवीं कक्षा तक की पढ़ाई करवाते हैं। बारिश होती है तो पढ़ाई बंद हो जाती है, तेज धूप में बच्चे छांव ढूंढते हैं।

छात्रा अंजली कुमारी बताती है कि बारिश होने पर उन्हें घर जाना पड़ता है। तेज धूप में परेशानी होती है। उनकी इच्छा है कि स्कूल की पक्की बिल्डिंग हो, जहाँ वो बेंच और डेस्क पर बैठकर पढ़ सकें। एक अन्य छात्रा, रानी कुमारी बताती है कि जब से वह स्कूल आई है, तब से पेड़ के नीचे ही पढ़ाई कर रही है। कुछ दिन पहले एक पेड़ की डाली टूटकर उसकी सहेली के पास गिर गई थी। डर बना रहता है, लेकिन कोई विकल्प नहीं है।

यह विद्यालय पहले लोक शिक्षा केंद्र के रूप में 2003 में शुरू हुआ था। 2006 में इसे प्राथमिक विद्यालय में मर्ज कर दिया गया। लेकिन तब से अब तक कोई भवन नहीं बन सका। प्रधानाचार्य ने कई बार भवन के लिए जिला प्रशासन और सरकार से निवेदन किया, पर सिर्फ आश्वासन मिला।

ग्रामीणों ने भी 2016 में सरकारी जमीन देने को लेकर शिकायत दर्ज कराई थी। हाल ही में 19 मई 2025 को प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी ने अंचलाधिकारी को पत्र लिखा है कि स्कूल के लिए जमीन उपलब्ध कराई जाए।

पंचायत के मुखिया प्रतिनिधि सुरेश प्रसाद सिंह का कहना है कि यह दुखद है कि आज भी पेड़ के नीचे स्कूल चल रहा है। अब जमीन की व्यवस्था हो रही है, सरकार से मांग है कि जल्द से जल्द फंड मुहैया कराए, ताकि स्कूल की इमारत बन सके।

वहीं जिला शिक्षा पदाधिकारी कृष्णनंद सदा ने बताया कि इस स्कूल के लिए दो बार फंड भेजा गया था, लेकिन कुछ कारणों से निर्माण नहीं हो सका। अब शीघ्र कार्रवाई की जाएगी।

यह स्कूल बिहार सरकार के मंत्री मदन सहनी के क्षेत्र में है, लेकिन बच्चों की स्थिति और शिक्षा व्यवस्था की यह सच्चाई अब भी बेहद चिंताजनक है।

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