
न्यूज़ मिथिला डेस्क : मधुबनी लोकसभा क्षेत्र का केवटी विधानसभा, दरभंगा जिले के केवटी और सिंहवाड़ा प्रखंड की 38 पंचायतों से मिलकर बना है। 2020 के चुनाव में यहां बड़ा उलटफेर हुआ था, जब भाजपा के मुरारी मोहन झा ने पहली बार मैदान में उतरते हुए, राजद के दिग्गज अब्दुल बारी सिद्दीकी को 5,126 मतों से हरा दिया। उस समय गांव-गांव में हवा थी—”नई सोच, नया चेहरा”। लेकिन पांच साल बाद वही हवा सवालों से भरी है।
मुख्य सड़कों की हालत देखकर लगेगा कि विकास की गाड़ी तेज़ चली है—चौड़ी सड़कें, कई पुल-पुलिया, बिजली की सुविधा। मगर जैसे ही कोई ग्रामीण रास्ता पकड़ते हैं, तस्वीर बदल जाती है। पथरा-खिरमा से दुधिया होते हनुमाननगर जाने वाली सड़क बरसात में कीचड़ और पानी से जाम हो जाती है। बनवारी चौक से नयागांव, परसाविसनपुर से पिलखवाड़ा और असराहा से बग्धा की सड़कों पर गड्ढों की गिनती करना मुश्किल है।
सबसे बड़ी परेशानी कोठिया पंचायत के बाजिदपुर शिव मंदिर के पास बागमती नदी पर पुल न होना है। यह पुल चुनावी भाषणों में था, मंजूरी भी मिली, लेकिन आज भी काम शुरू नहीं हुआ।
बात करें अनुसूचित जाति-जनजाति आंबेडकर छात्रावास की तो वो खंडहर की तरह खड़ा है। डिग्री कॉलेज का सपना अब भी अधूरा है। कई स्कूलों के भवन टूटे-फूटे हैं, हालांकि कुछ जगह मरम्मत विधायक निधि से हुई है।
स्वास्थ्य सेवाओं की हालत और भी खराब है। नयागांव का स्वास्थ्य केंद्र अधूरा पड़ा है, करजापट्टी का केंद्र किराए के मकान में चल रहा है। रैयाम चीनी मिल के गेट पर वर्षों से ताले लटके हैं। राजा शिव सिंह काल का बाढ़ पोखर सिर्फ कागज़ों में सुंदर बना है, ज़मीन पर नहीं।
हाँ, विधायक की अनुशंसा पर कुछ कामों को मंजूरी मिली—गोपालपुर गुमटी पर ओवरब्रिज, ननौरा-मोहम्मदपुर सड़क का चौड़ीकरण, कमला मरने नदी पर पुल और दोनों प्रखंड मुख्यालय भवन का निर्माण। मुख्यमंत्री क्षेत्र विकास योजना से गांवों में सड़कें बनीं, बेंच-डेस्क और सबमर्सिबल लगाए गए, चापाकल गाड़े गए और छोटे पुल-पुलिया तैयार हुए।
लेकिन सवाल वही है—मंजूरी के बाद भी कई काम अधूरे क्यों हैं? जिन वादों पर जनता ने भरोसा किया, वे जमीन पर क्यों नहीं उतरे? गांव के बुजुर्ग कहते हैं—”मुरारी बाबू का नाम तो हर योजना में है, पर आधे काम ही पूरे हैं।”
अगला चुनाव करीब है, और केवटी की जनता इस बार पक्की सड़कों के साथ पक्के वादों का हिसाब भी मांगेगी।




