Uncategorized

डाॅ. धीरज पांडे को युवा साहित्य अकादमी पुरस्कार

दरभंगा, न्यूज़ मिथिला : कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के दर्शन विभागाध्यक्ष डाॅ. धीरज कुमार पांडे को 2025 के साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार के लिए चुना गया है। यह पुरस्कार उनकी संस्कृत भाषा में लिखी आलोचनात्मक गद्य पुस्तक “पारिभाषिकशब्दस्वारस्यम्” के लिए दिया जा रहा है। अकादमी ने बुधवार को इसकी घोषणा की है।

डाॅ. पांडे ने 23 मार्च 2023 को दर्शन विभाग में सहायक प्राध्यापक के रूप में योगदान दिया था। पुरस्कार के लिए गठित तीन सदस्यीय निर्णायक मंडल में प्रो. सीपी सत्यनारायण, प्रो. कुंजन आचार्य और प्रो. उमा वैद्य शामिल थे। इनकी अनुशंसा पर अकादमी अध्यक्ष माधव कौशिक ने डाॅ. पांडे के नाम की घोषणा की। इस बार डोगरी को छोड़कर 23 भाषाओं में पुरस्कार घोषित किए गए हैं।

डाॅ. पांडे उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के सहतवार क्षेत्र के बलेउर गांव के निवासी हैं। इनके पिता शिव कुमार पांडे हैं। बचपन से ही इनकी प्रतिभा और संस्कृत के प्रति लगाव रहा है। इन्होंने कई प्रतियोगिताओं में प्रथम स्थान प्राप्त किया है। 2014 में जेआरएफ प्राप्त किया। 2015 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय की श्रेष्ठ निबंध प्रतियोगिता में प्रथम स्थान पाने पर महामना संस्कृत अवार्ड मिला। उसी वर्ष स्नातकोत्तर परीक्षा में प्रथम स्थान पर रहने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों चांसलर मेडल मिला।

इन्होंने राज्य और राष्ट्रीय स्तर की कई प्रतियोगिताओं में प्रथम स्थान प्राप्त कर बलिया और अपने गांव का नाम रोशन किया है। उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान, लखनऊ ने 2022 में इनकी कृति “मूल्यपरा प्रस्थानत्रयी” को नामित पुरस्कार से सम्मानित किया।

विश्वविद्यालय के पीआरओ निशिकान्त ने बताया कि डाॅ. पांडे अब तक पाँच पुस्तकों की रचना कर चुके हैं। आधा दर्जन से अधिक पुस्तकों पर कार्य जारी है। इन्होंने ऑनलाइन माध्यम से कई दार्शनिक ग्रंथों का अध्यापन भी कराया है।

डाॅ. पांडे अपनी सफलता का श्रेय अपने पुरुषार्थ, माता-पिता के आशीर्वाद और भगवान विश्वनाथ की कृपा को देते हैं। उनका कहना है कि युवा वर्ग को लक्ष्य तय कर निरंतर चिंतन और कठोर परिश्रम करना चाहिए। ग्रंथ लेखन में व्याकरण और सिद्धांत की शुद्धता के साथ पदलालित्य का ध्यान रखना जरूरी है।

डाॅ. पांडे ने कहा कि मिथिला की भूमि साधारण नहीं है। यह ज्ञान, दर्शन, आचार और व्यवहार की भूमि है। यहाँ रहकर कुछ लिखना-बोलना गौरव की बात है। वे इस पुरस्कार को मां उग्रतारा और महिषासुर मर्दिनी की कृपा मानते हैं। उनकी इस उपलब्धि से संस्कृत विश्वविद्यालय परिवार हर्षित और गौरवान्वित है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!