
मैथिली की दशा और दिशा’ विषय पर संगोष्ठी आयोजित
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संवैधानिक भाषा के रूप में मैथिली के प्रगति की दिशा व दशा संतोष जनक कही जा सकती है। लेकिन इसके शैक्षणिक एवं साहित्यिक प्रगति की दशा को सुदृढ़ करने की दिशा आज अपने मूल उद्देश्य से भटक चुकी है। उक्त बातें मैथिली अकादमी के पूर्व अध्यक्ष पं कमलाकांत झा ने सहरसा में ‘मैथिली की दशा और दिशा’ विषय पर अपना विचार रखते हुए कही। उन्होंने कहा कि आज मैथिली करोड़ों लोगों की मातृभाषा मात्र नहीं है, यह रोटी और रोजगार की भाषा भी बन चुकी है। इसकी प्रगति की गति को बाधा पहुंचाने के दोषी सिर्फ षड्यंत्रकारी तत्व नहीं हैं, बल्कि हम सभी भी इसके लिए बराबर के जिम्मेवार हैं। उन्होंने कहा कि मैथिली को यथोचित संरक्षण एवं संवर्धन प्रदान करने के लिए इसकी शुरुआत अपने घर से करनी होगी। जैसे किसी वृक्ष के समुचित पोषण के लिए उसके जड़ में पानी डालना महत्वपूर्ण है। इसी तरह परिवार के लोगों के बीच मैथिली में संवाद करना और प्राथमिक शिक्षा में पढ़ाई का माध्यम मैथिली को शीघ्रातिशीघ्र बनाया जाना अत्यंत जरूरी है।
संगोष्ठी के प्रस्तावित विषय पर अपना विचार रखते हुए जनता कॉलेज, झंझारपुर के प्राचार्य सह मैथिली के वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ नारायण झा ने कहा कि बिहार लोक सेवा आयोग की परीक्षा में मैथिली की मान्यता वैकल्पिक विषय के रूप में समाप्त किए जाने से मैथिली को काफी नुकसान हुआ है। मैथिली विषय से बीपीएससी परीक्षा की तैयारी करने वाले प्रतिभागियों का रुझान जहां काफी कम हुआ है, वहीं मैथिली पुस्तक प्रकाशन क्षेत्र को भारी दुष्प्रभाव का शिकार होना पड़ा है। उन्होंने कहा कि इस महत्वपूर्ण बिंदु पर सुधार के लिए मेरी समझ से कोई समुचित प्रस्ताव मुख्यमंत्री तक अब तक ठोस तरीके से नहीं पहुंचा है। वरना, जिस मुख्यमंत्री ने लालू सरकार द्वारा बीपीएससी से मैथिली को हटाए जाने को अनुचित मानते हुए वर्ष 2007 में मैथिली को बीपीएससी की परीक्षा में वैकल्पिक विषय के रूप में पुनर्बहाल किया था, वह इसकी अधोगति कदापि बर्दाश्त नहीं करेंगे।
विद्यापति सेवा संस्थान के मीडिया संयोजक प्रवीण कुमार झा ने कहा कि मैथिली भाषा की दशा और दिशा काफी उज्ज्वल है। उन्नत साहित्य, संस्कृति एवं संस्कार से युक्त मैथिली भाषा मणि सदृश चमक रही है। लेकिन इसके साथ ही मैथिली भाषा के विकास की गति को अवरुद्ध करने के लिए अनेक प्रकार के सुनियोजित षडयंत्र भी खूब हो रहे हैं। मैथिली भाषा की अवनति के लिए सबसे अधिक जवाबदेह वैसे कृतघ्न लोग हैं जो मैथिली का सबसे अधिक नमक खाते हैं। उन्होंने कहा कि मैथिली के समुचित विकास के लिए सभी मिथिलावासी और इस उद्देश्य से गठित मैथिली सेवी संस्थाओं को एकजुट होकर संघर्ष करने की आवश्यकता है। अध्यक्षीय संबोधन में विद्यापति चेतना समिति के अध्यक्ष राधा मोहन ठाकुर ने मैथिली के सर्वांगीण विकास के लिए मिथिला विकास परिषद की स्थापना एवं शास्त्रीय भाषा की सूची में इस समृद्ध भाषा को शामिल किए जाने पर बल दिया।
इससे पहले संगोष्ठी का विषय प्रवेश कराते हुए कुलानंद झा ने कहा कि संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान प्राप्त करने के बावजूद मैथिली भाषा की दुर्दशा अभी भी खत्म नहीं हुई है। अष्टम आनुसूची में दर्ज होने के बावजूद मैथिली को वह दर्जा नहीं मिल रहा है जो संविधान में शामिल अन्य भाषाओं प्राप्त हुआ है। मैथिली भाषा के यथोचित विकास के लिए आपसी ईर्ष्या छोड़कर मिथिला क्षेत्र के प्राथमिक स्कूल में मैथिली भाषा को पाठ्यक्रम और पढाई का माध्यम बनाया जाना बहुत जरूरी है। अपने संबोधन में उन्होंने साहित्य अकादमी द्वारा दिए जा रहे पुरस्कारों की पारदर्शिता पर भी गंभीर चोट किए। वरिष्ठ मैथिली अभियानी जयराम झा के संचालन में आयोजित संगोष्ठी में धन्यवाद ज्ञापन डा शैलेन्द्र कुमार ने किया।मौके पर राघव झा, मानिक चौधरी, सुरेश पोद्दार, धनंजय कुमार सहित अनेक गणमान्य लोग उपस्थित रहे।